जीवनदायिनी मां नर्मदा, हमारी आस्था, आत्मा और संस्कृति की धरोहर

विनोद विन्ध्येश्वरी प्रसाद पाण्डेय



भारत की पावन नदियों में नर्मदा एक ऐसी नदी है, जिसे केवल जलधारा के रूप में नहीं, बल्कि एक जीवंत देवी, मां और संस्कृति की आधारशिला के रूप में पूजा जाता है। यह नदी हमारी आस्था, आत्मा और संस्कृति का प्रतीक है। नर्मदा जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह हमें हमारी जड़ों और हमारी जिम्मेदारियों की याद दिलाने का अवसर है।नर्मदा को भारतीय सनातन परंपरा में मां नर्मदा के रूप में पूजा जाता है। शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव के आशीर्वाद से यह नदी अवतरित हुई और तभी से यह मोक्षदायिनी मानी जाती है। स्कंद पुराण के अनुसार ऐसी मान्यता है कि माँ नर्मदा के दर्शन मात्र से सारे पाप धुल जाते हैं। नर्मदा परिक्रमा, जो करीब 3,000 किलोमीटर की है, एक ऐसी यात्रा है जो न केवल शारीरिक बल्कि आध्यात्मिक शुद्धि का माध्यम भी है।नर्मदा केवल एक नदी नहीं, बल्कि यह उस सभ्यता का प्रतीक है, जो इसके किनारे फली-फूली। इसके तट पर अनेक मंदिर, तीर्थस्थान, और ऐतिहासिक स्थल हैं, जो हमारे गौरवशाली अतीत की कहानियां सुनाते हैं।अमरकंटक,ओंकारेश्वर, ओर महेश्वर जैसे स्थल नर्मदा की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं।अमरकंटक नर्मदा का उद्गम स्थलहै जहां इसका पहला स्पर्श पृथ्वी से होता है।ओंकारेश्वर में नर्मदा, भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग को वंदन करती है।महेश्वर जहां अहिल्याबाई होल्कर ने इस नदी को साक्षी मानकर धर्म, संस्कृति और न्याय की स्थापना की।इसके अलावा, यह नदी आदिवासी समाज और स्थानीय परंपराओं का भी अभिन्न हिस्सा है, जो इसे जीवनदायिनी के साथ-साथ संस्कृति संवाहिनी भी बनाती है।नर्मदा का पानी न केवल आध्यात्मिक बल्कि भौतिक रूप से भी जीवनदायिनी है। यह नदी मध्य भारत के लाखों लोगों के लिए पीने के पानी, कृषि और ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। इसके जलाशय और बांध सिंचाई और बिजली उत्पादन के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था को सशक्त करते हैं। लगातार बढ़ते औद्योगिकीकरण, वनों की कटाई, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन ने इस पवित्र नदी के अस्तित्व को चुनौती दी है। हमें यह समझना होगा कि नर्मदा केवल एक नदी नहीं, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए अमूल्य धरोहर है। इसका संरक्षण हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। मां नर्मदा जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह समय है अपनी जिम्मेदारी को समझने का। नर्मदा की पवित्रता, प्रवाह और अस्तित्व को बनाए रखना हर नागरिक का कर्तव्य है। इसके जल को स्वच्छ रखना, इसके तटों पर वृक्षारोपण करना और इसके सांस्कृतिक महत्व को बचाए रखना, यही हमारी सच्ची अदारंजलि होगी।मां नर्मदा केवल जलधारा नहीं, बल्कि वह शक्ति है, जो जीवन को दिशा देती है। आइए, इस नर्मदा जयंती पर यह संकल्प लें कि हम अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए इस जीवनदायिनी नदी को सुरक्षित और संरक्षित रखेंगे। मां नर्मदा की कृपा हम सभी पर सदा बनी रहे।


"नर्मदे हर!"

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