अनूपपुर। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार, घोटाला के साथ कुलपति प्रो श्रीप्रकाशमणि त्रिपाठी द्वारा जनजातीय समाज, शिक्षा मंत्रालय, राष्ट्रपति भवन के साथ छल करने की लिखित शिकायत ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष अंतर सिंह आर्य को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूर्व विभाग संगठन मंत्री तथा मध्य क्षेत्र (मालवा, मध्य भारत, महाकौशल, छत्तीसगढ़ प्रांत) के स्वावलंबन केंद्र प्रमुख मोरध्वज पैकरा किया है।
*रिजल्ट फिक्सिंग तथा चोरी-छुपे जोइनिंग प्रक्रिया करवा रहे है कुलपति*
मोरध्वज पैकरा ने बताया की मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के युवा, अत्यंत पीड़ा और चिंता में हैं। विश्वविद्यालय में हाल ही में विभिन्न पदों (मल्टी-टास्किंग स्टाफ, लैबोरेट्री अटेंडेंट, जूनियर इंजीनियर, लाइब्रेरी अटेंडेंट, लैबोरेट्री असिस्टेंट आदि) के लिए लिखित परीक्षा आयोजित की गई थी। परंतु यह जानकारी विश्वसनीय सूत्रों से सामने आई है कि इस परीक्षा का परिणाम फिक्सिंग के माध्यम से पहले से ही तय कर लिया गया है। परीक्षा परिणाम को गुपचुप तरीके से कुछ उम्मीदवारों को पहले से ही बता दिया गया है, जिनकी नियुक्ति चोरी-छिपे कराई जा रही है। यह ईमानदार और योग्य उम्मीदवारों के साथ विश्वासघात है। लिखित परीक्षा का परिणाम अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन अंदर ही अंदर चयनित उम्मीदवारों को गुप्त रूप से जॉइनिंग की प्रक्रिया पूरी करने के लिए तैयार किया जा रहा है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के सीधे-साधे युवाओं को इस पूरी प्रक्रिया से वंचित किया जा रहा है, जो कि जनजातीय क्षेत्र के विकास के उद्देश्य के विरुद्ध है।
*जनजातीय समाज के प्रतिनिधित्व को जानबूझकर उपेक्षित किया गया*
मोरध्वज पैकरा ने बताया कि फर्जी कार्यपरिषद न केवल विश्वविद्यालय अधिनियम का उल्लंघन है, बल्कि इसके माध्यम से कई गंभीर अपराध किए गए हैं, विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 24(2) का उल्लंघन कर कार्य परिषद में जनजातीय सदस्यों की पर्याप्त संख्या सुनिश्चित नहीं की गई। फर्जी और पक्षपातपूर्ण नियुक्तियां कर अधिनियम के उद्देश्य को हानि पहुंचाई गई। फर्जी सॉफ्टवेयर से परीक्षा आयोजित कर हजारों छात्रों को ठगा गया, तथा अवैध ढंग से नियमित पदों पर भर्ती की जा रही है। अवैध नियुक्तियां, भ्रष्टाचार, और निविदा (टेंडर) प्रक्रिया में घोटाले किए गए। रोस्टर प्रणाली का उल्लंघन कर अनुसूचित जाति/जनजाति के पदों को सामान्य वर्ग में बदलकर धन लाभ अर्जित किया गया। विश्वविद्यालय में नियमित पदों पर अवैध तरीके से लिखित परीक्षा आयोजित कर छात्रों को धोखा देना है।
*मुख्यमंत्री तथा मुख्य सचिव को वास्तविक स्थिति की जानकारी देना स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी*
मोरध्वज पैकरा ने बताया की कुलपति द्वारा ऐसी प्रक्रियाएं अपनाई जा रही हैं जो विश्वविद्यालय की गरिमा और प्रशासनिक पारदर्शिता पर सवाल खड़े करती हैं। स्थानीय जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन की नैतिक जिम्मेदारी है कि लिखित शिकायत मिलने के पश्चात तत्काल प्रभाव से जांच कर इस पूरी भर्ती प्रक्रिया और लिखित परीक्षा पर के परिणाम घोषित करने पर रोक लगवाए अन्यथा आम युवाओं का प्रशासन और सरकार से विश्वास उठने लगेगा जो भविष्य के लिए घातक हो जाएगा। यह प्रकरण न केवल विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि क्षेत्रीय युवाओं में गहरी असंतोष और पीड़ा उत्पन्न कर रहा है। इस प्रकरण की जांच के लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समिति का गठन किया जाए। जिले के प्रभारी मंत्री इस मामले में कोई भी बयान या जांच के लिए आदेश नहीं दिए हैं जिससे युवाओं को प्रदेश सरकार के प्रति असंतोष की भावना उत्पन्न हो रही है, प्रभारी मंत्री को चाहिए कि आम युवाओं के लिए न्याय हेतु जांच का आदेश करें, योग्य और मेहनती उम्मीदवारों के साथ न्याय हो, और किसी भी प्रकार की अनुचित नियुक्तियों को रद्द किया जाए।
*कुलपति ने असंवैधानिक गतिविधि से कार्य परिषद के चार फर्जी सदस्य नामित किया*
मोरध्वज पैकरा ने बताया कि विश्वविद्यालय के एक्ट के अनुसार कार्य परिषद के गठन में मातृ एनजीओ, साहित्यिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों से चार सदस्य नामित किये जाते है, लेकिन प्रो श्रीप्रकाशमणि त्रिपाठी ने शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार से अनुमति लिए बगैर अपने परिचित एवं रिश्तेदारों को कार्य परिषद का सदस्य बना दिया है, कुलपति के परिचित यही चार सदस्य तथा कुछ आमंत्रित सदस्य मिलकर कोरम पूरा करके कार्य परिषद की फर्जी गतिविधियां संचालित कर रहे हैं, विश्वविद्यालय में कुलपति द्वारा डीन कोटा से भी फर्जीवाडा करके सदस्य नामित किया गया है। दो सदस्य विश्वविद्यालय कोर्ट से नामित होते है लेकिन कुलपति ने षडयंत्रपूर्वक विश्वविद्यालय के कोर्ट के गठन के लिए किसी भी प्रकार का पहल या अनुरोध मंत्रालय में नहीं भेजा और ना ही मंत्रालय को यह सूचित किया कि विश्वविद्यालय कोर्ट का गठन आवश्यक है, शिक्षा मंत्रालय के अवर सचिव से सेटिंग करके इस फाइल की प्रोसेसिंग को रुकवा लिया है जिसके कारण कोर्ट से दो निर्वाचित सदस्य इसमें सम्मिलित नहीं हो पाते हैं। कुछ एक्सटेंसन भी गैरकानूनी रूप से दिए है।
*नेक मान्यता समाप्त होना तथा प्रत्यक्ष रूप में एक भी दीक्षांत समारोह का ना होना शर्मनाक*
मोरध्वज पैकरा ने बताया कि पिछले 5 वर्षों में प्रत्यक्ष रूप में एक भी दीक्षांत समारोह का ना होना तथा नेक मान्यता समाप्त होना कुलपति के एकेडमिक शून्य होने का प्रमाण है, चूँकि कुलपति केवल नियुक्ति घोटाला, फर्जीवाड़ा, भ्रष्टाचार में व्यस्त रहे, जनजातीय कल्याण के लिए बनाए गए इस विश्वविद्यालय में जनजातियों का बड़े पैमाने पर नुकसान कर दिया है. कुलपति का कृत्य अक्षम्य अपराध की श्रेणी में आता है और इस मामले में शिक्षा मंत्री, मुख्यमंत्री को गंभीरता से ध्यान देकर तत्काल कार्रवाई करना चाहिए।
*पद के दुरुपयोग का मामला है*
मोरध्वज पैकरा ने बताया कि प्रो. श्रीप्रकाशमणि त्रिपाठी कुलपति पद का दुरुपयोग कर जनजातीय हितों को नुकसान पहुंचाने की साजिश रची गई। कार्य परिषद की बैठक में फर्जी कोरम पूरा किया गया और कूट रचित मिनिट्स तैयार किए गए। फर्जी नियुक्ति, अधिनियम के विपरीत शैक्षणिक पदों पर भर्ती, युजीसी के डेवलपमेंट फंड का जबरदस्त दुरूपयोग, अवैध टेंडर प्रक्रिया, जनजातीय समाज के गार्ड तथा सफाई कर्मियों के वेतन से गबन कर अत्यंत निम्न स्तर का भ्रष्टाचार और निर्माण घोटाले किये गए है। कार्य परिषद की बैठकों के मिनट्स सार्वजनिक रूप से वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं हैं। मंत्रालय के निर्देशों के बावजूद कार्यकाल समाप्त होने के निकट भर्तियां की गईं। कुलपति पद के पावर का दुरुपयोग कर जनजातीय समाजएवं ईष्यावश कार्यवाही से एक्ट के विरुद्ध जाकर हानि पहुँचाने की दुर्भावनापूर्ण गतिविधियां संचालित कर रहे है।