अनूपपुर/मध्य प्रदेश के बरगंवा अमलाई नगर परिषद के सोन नदी किनारे स्थित मुक्तिधाम में नरक चौदस के दिन एक अनूठी परंपरा का आयोजन होता है। इस दिन श्मशान में दीपों की रोशनी, रंगोली और पटाखों की जगमगाहट से माहौल जीवन्त हो उठता है। यह दृश्य न केवल दिवाली के उल्लास को दर्शाता है, बल्कि एक विशेष श्रद्धा भी व्यक्त करता है।साधारणत: श्मशान का नाम सुनकर मन में एक गंभीरता आ जाती है, लेकिन बरगंवा अमलाई के मुक्तिधाम में नरक चौदस की संध्या एक अलग अनुभव लेकर आती है। वर्ष 2015 में स्थानीय नागरिकों ने इस परंपरा की शुरुआत की थी। उनकी मान्यता है कि इस विशेष आयोजन से वे अपने पूर्वजों के प्रति आदर और सम्मान व्यक्त करते हैं और दिवाली के मौके पर उन्हें भी इस उल्लास में शामिल मानते हैं।रूप चौदस की शाम को यहां का श्मशान स्थल दीपों से सजाया जाता है, जिससे वह एक अलौकिक दृश्य में बदल जाता है। इस दौरान सैकड़ों दीपक जलाए जाते हैं, और रंगोली बनाई जाती है। आतिशबाजी की जगमगाहट इसे एक उत्सवपूर्ण माहौल में बदल देती है।इस परंपरा के अनुसार, दीपक जलाना और आतिशबाजी करना यहां के लोगों के लिए एक प्रकार से पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। अब यह आयोजन यहां की पहचान बन चुका है, और हर वर्ष लोग इस अवसर पर अपने पूर्वजों की स्मृति में यह अनोखी परंपरा निभाते हैं। इस तरह, बरगंवा अमलाई मुक्तिधाम में मनाया जाने वाला यह पर्व जीवन, मृत्यु और संस्कारों के बीच एक संतुलन का प्रतीक बन गया है, जहां श्रद्धा और उल्लास का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
बरगंवा अमलाई मुक्तिधाम: नरक चौदस पर श्मशान में दीपों की रोशनी और श्रद्धा का अनोखा संगम