‘‘गरीबों के ‘‘अरबपति’’ ‘‘मसीहा’’ व उद्योगपतियों के ‘‘भीष्म पितामह’
राजीव खंडेलवाल :_
सिर्फ राष्ट्र की ही अपूर्णीय क्षति ही नहीं, बल्कि......
मेरे जीवन के 70 वर्षों में ऐसे अनेक दुर्भाग्य पूर्ण अवसर आए, जब देश ने अनेक अनमोल रत्नों को खोया। परंतु यह पहला अवसर है, जब सर रतन टाटा के देहावसान पर देश के आम नागरिकों ने राष्ट्रीय अपूरणीय क्षति के साथ यह महसूस किया कि उनके परिवार के बीच का ही कोई ‘‘अपना’’ चला गया, जिनकी परिवार में मानसिक उपस्थिति उनके जाने के बाद ‘‘अवसाद’’ के रूप में महसूस हुई। उनकी व्यक्तिगत एवं राष्ट्र निर्माण के लिए की गई उपलब्धियों, संस्मरणों को याद किया, लिखा जाए तो कई किताबें लिख जायेंगी। फिर भी आज एक युग के अंत के इस दुखद अवसर पर कुछ महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया जाना आवश्यक है।
देश की औद्योगिक प्रगति में ‘‘टाटा’’ का प्रशंसनीय यादगार योगदान।
‘‘जमशेदजी नुसरवानजी टाटा’’ द्वारा वर्ष 1868 में स्थापित की गई ‘‘टाटा’’ के जेआरडी टाटा से वर्ष 1971में विरासत में पाये टाटा साम्राज्य के शिल्पकार 86 वर्ष की उम्र में भी अंतिम समय तक सक्रियता दिखाते रहे, सर रतन टाटा अन्ततोगत्वा अपने करोड़ों प्रशंसकों को अलविदा कह ‘‘प्रभु’’ के पास ‘‘परलोक’’ चले गये। अभी 2 अक्टूबर को ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘‘स्वच्छ भारत मिशन’’ के सफलतापूर्वक 10 वर्ष पूर्ण होने पर ‘‘स्वच्छता अभियान’’ के संबंध में उन्होंने एक वीडियो क्लिप जारी की थी। मृत्यु के 2 दिन पूर्व ही पूरे देश को अपना परिवार मानने वाले ‘‘अविवाहित’’ सर रतन टाटा ने अपने स्वास्थ्य के बाबत ‘‘एक्स’’ पर लिखें अंतिम संदेश में ‘‘उम्र संबंधी जरूरी चिकित्सा जांच करवा रहा हूं। मेरा मनोबल ऊंचा है’’, के साथ देशवासियों को ‘‘मेरे बारे में सोचने के लिए शुक्रिया’’ कहा। वर्तमान में जिस प्रकार अंबानी-अडानी का औद्योगिक जगत में देश-विदेश में बोल बाला है, ठीक उसी प्रकार स्वतंत्रता के बाद से देश के विकास के प्रारंभिक दौर में टाटा-बिरला औद्योगिक घरानों का बड़ा योगदान रहा है। जब मुंबई की प्रसिद्ध होटल वाटसंस में ‘‘जेआरडी’’ को ‘‘यूरोपीय न होने’’ के कारण प्रवेश करने से रोक दिया गया था, तब उन्होंने अपने अपमान व नस्ल भेद नीति का माकूल जवाब वर्ष 1903 में 14 वर्ष के अथक प्रयासों से मुंबई में देश की प्रथम पंचतारा होटल ताजमहल विदेशी होटलों के समकक्ष बना कर दिया। टाटा समूह ने जमशेदजी टाटा के जमाने से लेकर आज तक औद्योगिक विकास के अलावा, टाटा ट्रस्टों के माध्यम से देश के आम नागरिकों के लिए जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में मानवतावादी व परोपकारी सहायता व विकास के नए अतुल्यनीय ‘‘आयाम’’ स्थापित किये। इसके शिल्पकार मुख्य रूप से सर रतन टाटा ही थे। शायद इसलिए आज उनके स्वर्गवासी होने पर सर रतन टाटा की चर्चा ‘‘उद्योगपति’’ से ज्यादा सामाजिक क्षेत्र में विभिन्न ट्रस्टों के माध्यम से किये गये उनके योगदान को याद कर के की जा रही है।
‘उद्योगपति’’ से ज्यादा ‘‘सामाजिक सरोकार’’ से भरा ‘‘राष्ट्रवादी’’ व्यक्तित्व।
सर रतन टाटा के व्यक्तित्व में एक नागरिक व समाज की आवश्यकता के अनुरूप नये-नये क्लेवर, इनोवेशन (नवाचार) का जुनून सवार था, जिसे कार्यरूप में परिणत करने की जो जिजीविषा थी, वह निश्चित रूप से उन्हे अन्य किसी भी दान-दाताओं से अलग विशिष्ट व्यक्ति बनाती है। फिर चाहे नैनो कार के उत्पादन ही बात क्यों न हो। यह विचार उनके मन तब आया, जब उन्होंने एक परिवार को मोटरसाइकिल के पीछे महिला वह बीच में बच्चे को बैठकर जाते देखा। तब उनके मन में यह विचार आया कि ऐसे सामान्य व्यक्ति की आर्थिक क्षमता के अंदर क्या कोई चौपाहा वाहन (कार) उपलब्ध कराई जा सकती है? तब 1 लाख रू. की नैनो कार देश में आयी। वर्ष 1941 में देश के असंख्य कैंसर पीड़ितों के लिए ‘‘टाटा मेमोरियल’’ अस्पताल स्थापित किया गया। तथापि उसका प्रबंधन वर्ष 1957 में भारत सरकार के अधीन हो गया था। कोरोना काल में ‘अजीम प्रेमजी’ के बाद रतन टाटा दूसरे सबसे बड़े दानदाता थे, जिन्होंने लगभग 1500 करोड़ से अधिक का दान दिया था। वास्तव में वे देश व विश्व के सबसे अमीर व्यक्ति बनने की बजाए दूसरे सबसे बड़े दान-दाता बने। ‘‘औद्योगिक घराने देश की सम्पत्ति के ट्रस्टी बनकर विकास करें’’ गांधी जी की इस सोच को सर रतन टाटा ने मूर्त रूप दिया। मुंबई बम कांड में होटल ताज पर हुए आतंकवादी हमले में 11 कर्मचारी मारे गए, तब सर रतन टाटा ने उनके परिवारों के पुनर्वास के लिए मात्र 20 दिन के भीतर ही एक ताज पब्लिक सर्विस वेलफेयर ट्रस्ट का गठन कर जो विस्तृत सहायता प्रदान की, वह विश्व के लिए एक मिसाल बनी। वे एक ऐसे दरिया दिल दान दाता थे, जिनके दान देने वाला एक हाथ का दूसरे हाथ को पता भी नहीं होता था। सर रतन टाटा अपनी आय का लगभग 65 प्रतिशत से अधिक व्यय टाटा ट्रस्टों के माध्यम से सामाजिक सरोकार के लिए करते थे। ‘‘राष्ट्रवाद’’ उनमे इतना कूट-कूट कर उन में भरा था कि ताज होटल पर आतंकी हमला होने पर उन्होंने यह तक कह दिया था कि एक भी आतंकी बचना नहीं चाहिए, भले ही पूरी ताज बिल्डिंग को बम से उड़ाना क्यों न पड़े? बेजुबान जानवरों खासकर डॉग्स के प्रति सर रतन टाटा का इतना ज्यादा लगाव था कि लगभग 165 करोड रुपए खर्च कर मुंबई के पॉश महालक्ष्मी इलाके में 5 मंजिला जानवरों के लिए अस्पताल इसी वर्ष खोला।
सर रतन टाटा व्यक्ति से ज्यादा एक ‘‘संस्था’’थे।
यदि सर रतन टाटा को ‘‘इनसाइक्लोपीडिया’’ कहा जाये तो गलत नहीं होगा। जीवन के लगभग हर क्षेत्र में वे एक अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति से लेकर शीर्ष स्तर पर विद्यमान उघमी, राजनेता आदि सबके लिए एक अविवादित, विशिष्ट प्रेरक व्यक्ति थे। मतलब ‘आम’ होकर भी वे एक दुर्लभ विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी हो गये थे। अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्ट की डिग्री लेने के बाद सीधे टाटा समूह के डायरेक्टर न बनकर कंपनी में एक कर्मचारी के रूप में कार्य कर उन्होेंने अनुभव लिया।पढ़ाई के दौरान भी उन्होंने नौकरी की। ‘‘सादा जीवन उच्च विचार’’ के प्रतीक लाल बहादुर शास्त्री के बाद वे दूसरे बन गए। कड़ी मेहनत, अनुशासित, शुचिता, स्वच्छता, ईमानदारी, उदारवादी, दूरदर्शी व्यक्तित्व के धनी, हर दिल अजीज, धड़कनों में देश व दिल में मानवता लिए, पशु प्रेमी, आम आदमी व देश की आवश्यकता के अनुरूप इनोवेशन करते हुए कार्य करना, उनको एक विलक्ष्ण व्यक्ति बनाता है। देश और स्वयं के स्वाभिमान के प्रति सजग रहने वाले सर रतन टाटा टाटा इंडिका की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उसे फोर्ड कंपनी को बेचने की बात लगभग अंतिम हो जाने के बावजूद, फोर्ड की हृदय को चूभने वाली एक बात से उनके स्वाभिमान को चोट पहुंचने के कारण उन्होने सौदे को तुरंत निरस्त कर दिया। कालांतर में जब फोर्ड की आर्थिक स्थिति खराब हुई, तब उन्होंने आगे बढ़कर ‘‘जगुआर-लैंड रोवर कंपनी’’ को खरीद कर फोर्ड की मदद की। वे देश को ‘‘आर्थिक शक्ति’’ बनाने की बजाए ‘‘खुशहाल देश’’ बनाना चाहते थे। यही उनका एकमात्र विजन प्रधानमंत्री मोदी से शायद कुछ अलग सा था। इसलिए किसी ने कहा यूं ही कोई नहीं रतन टाटा हो जाता।
‘उद्योगपतियों की वर्तमान छवि, परसेप्शन व नरेशन से बिल्कुल अलहदा टाटा की छवि’’।
वर्तमान युग में आज जो प्रायः उद्योगपतियों की छवि ईमानदारी से दूर और औद्योगिक नियमों के उल्लंघन से भरपूर होकर जहां उत्पाद की विश्वसनीयता की कमी झलकती है, वहीं विपरीत इसके टाटा उत्पाद राष्ट्रीयता व राष्ट्रवाद का भाव लिए विश्वसनीयता का एक नाम है, जो स्वयं में आईएसआई मार्क समान है। समय के पाबंद, प्रायः स्वयं फोन उठाने वाले सर रतन टाटा की इच्छानुसार स्वर्गवासी होने पर टाटा उद्योग में छुट्टी घोषित नहीं की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्तमान नीति राष्ट्र निर्माण, राष्ट्र प्रथम (नेशन फर्स्ट), मेक इन इंडिया, मेड इन इंडिया को रतन टाटा ने पहले ही अपने व्यक्तिगत और औद्योगिक व्यावसायिक जीवन में पूरी तरह से उतारा। परिणाम स्वरूप देश की प्रथम ‘‘स्वदेशी कार’’ इंडिका का निर्माण उन्होंने किया। टाटा साम्राज्य को लगभग 100 से ज्यादा देशों में 100 से अधिक कंपनियों के द्वारा वैश्विक विश्व समूह में बदल दिया। पाकिस्तान की जीडीपी से भी ज्यादा टाटा ग्रुप का मार्केट वैल्युएशन 400 अरब डॉलर से ज्यादा हो गया। ‘‘वंश वाद व परिवार वाद’’ से कुछ हटकर भी टाटा कंपनियों में परिवार के बाहर के लोगों को भी भागीदारी प्रदान कर सर रतन टाटा ने उनकी योग्यता और कर्मठता को मान्यता दी।
पद्म पुरस्कारों से नवाचार परिवार।
जेआरडी की बहन सिल्ला टाटा की भाभी रतनबाई पेटिट का विवाह पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना से होने के बावजूद संस्थापक जेआरडी टाटा को पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने भारत रत्न पुरस्कार दिया था। यह उनकी अटूट और अटल राष्ट्रभक्ति पर एक मोहर ही है। नवल टाटा को भी ‘‘पद्म विभूषण’’ से सम्मानित किया गया था। अब सर रतन टाटा को भी पद्म भूषण और पद्म विभूषण मिलने के बाद भारत रत्न देने की मांग की जा रही है, जो उनके प्रति देश की सही श्रद्धांजलि होगी। यद्यपि अपने जीवन काल में सर रतन टाटा ने इस मांग का विरोध किया था। इस परिवार की एक और उल्लेखनीय बात यह भी है कि जेआरडी की मां सुजैन वर्ष 1905 में देश की प्रथम महिला कार चलाने वाली बनी। सर रतन टाटा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता मिली, जिसका एक उदाहरण उन्हें ‘‘ऑर्डर ऑफ ऑस्ट्रेलिया’’ से सम्मानित किया जाना है। परोपकारिता के लिए इंग्लैंड की ‘रौकफेलर फाउंडेशन लाइफटाइम अचीवमेंट’ के लिए चुने गए। 2008 में उन्हें नैसकॉम ग्लोबल लीडरशिप पुरस्कार प्रदान किया गया। वे कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सलाहकार बोर्ड के सदस्य रहे। अनेक विदेशी विश्वविद्यालयों के ट्रस्टी होकर उन्हें मानद डॉक्टरेट की कई डिग्रियां भी प्रदान की गई। अंतरराष्ट्रीय विश्व प्रसिद्ध पत्रिका ‘‘टाइम्स’’ व ‘‘फार्चून’’ की विश्व के प्रभावशाली लोगों की सूची में सर रतन टाटा का नाम शामिल था।
सर ‘‘टाईकून’’ रतन टाटा की सफलता के मूल मंत्र।
सर रतन टाटा की सफलता के पीछे उनकी कुछ अद्धभूत सोच, विचार, मंत्र रहे हैं, जिनका अनुपालन करके हर कोई व्यक्ति सफलता के आयाम की ओर बढ़ सकता है।
1. मैं सही निर्णय लेने में विश्वास नहीं करता। मैं निर्णय लेता हूं और फिर उन्हें सही बनाता हूं।
2. जो पत्थर लोग तुम पर फेंकते हैं. उनका इस्तेमाल स्मारक बनाने में करो।
3. ऐसी कई चीजें हैं, जो अगर मुझे दोबारा जीने का मौका मिले तो शायद मैं अलग तरीके से करूंगा, लेकिन मैं पीछे मुड़कर यह नहीं देखना चाहूंगा कि मैं क्या नहीं कर पाया।
4. अगर आप तेजी से चलना चाहते हैं तो अकेले चलिए, लेकिन अगर दूर तक चलना चाहते हैं, तो साथ मिलकर चलिए।
5. तुम्हारी गलती सिर्फ तुम्हारी है, तुम्हारी असफलता सिर्फ तुम्हारी है, किसी को और दोष मत दो, अपनी इस गलती से सीखो और आगे बढ़ो।
6. लोहे को कोई नष्ट नहीं कर था सकता, उसका अपना ही जंग उसे नष्ट कर सकता है इसी तरह कोई भी व्यक्ति को नष्ट नहीं कर सकता, लेकिन उसकी अपनी मानसिकता कर सकती है।
7. जीवन में आगे बढ़ने के लिए उत्तार चढ़ाव जरूरी है, क्योंकि ईसीजी में भी एक सीधी लाइन का मतलब होता है कि हम जिंदा नहीं है।
8. चार बातों से शर्मिंदा मत हो स पुराने कपड़े, गरीब दोस्त, बूढ़े माता-पिता एवं सादगी
9. सबसे अच्छे नेता वे हैं, जो अपने से अधिक बुद्धिमान सहायकों और सहयोगियों के साथ रहने में रुचि रखते हैं।
उपसंहार।
अंत में देश के साधारण या निम्न मध्यम वर्ग को अमीर या अभिजात वर्ग का ‘‘लखपतिया नैनो कार’’ के माध्यम से एक एहसास, अनुभव कराने वाले सर रतन टाटा जरूर हमें टा-टा कह कर सृष्टि के अमिट नियम का पालन कर चले गये। परंतु किसी समय धनाढ्य की पहचान व पर्यायवाची बने उद्योगपति सर रतन टाटा का देश की जनता से इतना जुड़ाव भी हो सकता है, यह आज उनको श्रद्धांजलि देने आई अपार जनता तथा सोशल मीडिया सहित समस्त प्लेटफॉर्म्स के माध्यमों से देश भर से आई अपार प्रतिक्रियाओं को देख-पढ़-सुन कर महसूस किया जा सकता है। शायद ही इसके पूर्व किसी उद्योगपति के निधन पर देश इतना शोकाकुल व नतमस्तक हुआ है। इसका एक कारण शायद प्रत्येक घर की दिनचर्या में विभिन्न क्षेत्रों में टाटा उत्पाद की भागीदारी होती है। लेकिन इससे जुड़ा एक दुखद पहलू यह भी है कि एक-दो टीवी चैनलों इंडिया टीवी आदि को छोड़कर शेष चैनलों ने अंतिम यात्रा का पूरा लाइव टेलीकास्ट न करके सायं पांच बजे निर्धारित कार्यक्रमों ‘‘हल्ला बोल’’, ‘‘देश की बात’’ इत्यादि पर राजनीतिक बहस कराते रहे। गोया, सर रतन टाटा का जाना राष्ट्रीय क्षति न होकर ‘‘देश की बात’’ नहीं थी? देश की तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया का किसी प्रसिद्ध अभिनेता या नेता की ‘‘अंतिम यात्रा’’ के समय भी क्या यही रुख रहता? राजकीय सम्मान के साथ परंतु परंपरागत पारसी धर्म से अंत्येष्टि न होकर उनका अंतिम संस्कार भी सर्वधर्म समभाव का एक संदेश दे गया। स्वयं टा-टा कहकर अलविदा होकर परंतु नागरिकों को उनकी सफलता के लिए आवश्यक जीवन के नौ-दस मूल मंत्रो को टा-टा न कहकर अपने जीवन में आत्मसात करने का बहुमूल्य संदेश दे गए। और यही उनके प्रति न केवल सच्ची श्रद्धांजलि होगी, बल्कि वह स्वयं को प्रगति के पथ पर ले जाकर राष्ट्र के प्रति भी ‘‘उपकार’’ होगा।