तिरुपति लड्डू विवाद: धर्म में राजनीतीकरण और सुप्रीम फटकार


विनोद विंधेश्वरी प्रसाद पाण्डेय :_

हाल ही में आंध्र प्रदेश के तिरुपति लड्डू को लेकर उभरे विवाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को धार्मिक आस्था के मामलों में विवादित बयान देने के लिए फटकार लगाना इस बात की ओर इशारा करता है कि राजनीति और धर्म को सख्त रूप से अलग रखा जाना चाहिए।नायडू द्वारा तिरुपति लड्डू में चर्बी वाला घी इस्तेमाल किए जाने का आरोप लगाकर इसे एक राजनीतिक मुद्दा बनाना न केवल आस्थाओं के साथ खिलवाड़ है, बल्कि यह धार्मिक संस्थाओं के राजनीतिकरण की एक खतरनाक प्रवृत्ति का हिस्सा भी है। यह प्रवृत्ति हमारे देश के धार्मिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को कमजोर करती है।सुप्रीम कोर्ट ने अपने सख्त रुख के जरिए यह स्पष्ट संदेश दिया है कि धर्म को राजनीति से दूर रखना अत्यावश्यक है। बिना ठोस सबूत के धार्मिक मामलों पर बयान देना भावनाओं को आहत करने के साथ ही सामाजिक ताने-बाने को भी नुकसान पहुंचाता है। भारत जैसे विविधतापूर्ण और संवेदनशील समाज में ऐसी बयानबाजी समाज में अस्थिरता का कारण बन सकती है।तिरुमाला मंदिर ट्रस्ट द्वारा आपूर्ति किए गए घी में मिलावट की आशंका से शुरू हुआ यह विवाद, जब धार्मिक भावनाओं में बदल गया, तब इसने लोगों के बीच मतभेद और विभाजन पैदा किया। हालांकि यह स्पष्ट किया गया कि लड्डू बनाने में मिलावटी घी का उपयोग नहीं हुआ, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने राजनेताओं द्वारा धर्म के राजनीतिकरण के खतरों को उजागर कर दिया।धर्म और राजनीति के बीच एक स्पष्ट सीमा बनाए रखना संवैधानिक आवश्यकता है। धार्मिक मुद्दों का राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करना न केवल सामाजिक शांति को भंग करता है, बल्कि यह संविधान की मूल भावना को भी चोट पहुंचाता है। धर्म के नाम पर लोगों की आस्था से खिलवाड़ करना और धर्म को राजनीति का साधन बनाना समाज में दरार पैदा करने के समान है।सुप्रीम कोर्ट द्वारा नायडू को समय पर दी गई यह चेतावनी  यह सुनिश्चित करता है कि संवैधानिक पदों पर बैठे नेताओं को धर्म और राजनीति के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए और धार्मिक आस्थाओं के साथ संवेदनशीलता से पेश आना चाहिए।आखिरकार, तिरुपति लड्डू विवाद ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राजनीति में धर्म का इस्तेमाल किस हद तक खतरनाक हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख लोकतांत्रिक मूल्यों और धार्मिक पवित्रता की रक्षा करने का एक अहम उदाहरण है। धर्म के नाम पर राजनीति करने की प्रवृत्ति पर रोक लगाना समाज की भलाई और सामूहिक सद्भाव के लिए अत्यंत आवश्यक है।नेताओं को यह याद रखना चाहिए कि धार्मिक मुद्दों पर  बयानबाजी करते समय संयम और सतर्कता बरतना जरूरी है, ताकि जनता की धार्मिक भावनाओं को चोट न पहुंचे ।

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