आखिर पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन कब तक?

राजीव खंडेलवाल:–      



देश के प्रथम नागरिक द्वारा चिंता व्यक्त! एक ऐतिहासिक घटना।

स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह शायद पहली बार हो रहा है कि देश की महामहिम राष्ट्रपति महोदया ने देश के किसी भाग में हुई विक्षप्त यौन घटना पर गहरी चिंता व्यक्त की है। कोलकाता में ट्रेनिंग डॉक्टर से रेप मर्डर केस के लगभग 20 दिन बाद ‘‘विमेंस सेफ्टी इनफ इज इनफ’’ नाम से लिखे अपने लेख पर ‘‘पीटीआई एडिटर्स’’ से चर्चा के दौरान उन्होंने बतलायाः-

‘‘कोलकाता में हुई डॉक्टर के रेप और मर्डर की घटना से देश सकते में है। जब मैंने इसके बारे में सुना तो मैं निराश और भयभीत हुई। ज्यादा दुखद बात यह है कि यह घटना अकेली घटना नहीं है। यह महिलाओं के खिलाफ अपराध का एक हिस्सा है। जब स्टूडेंट्स, डॉक्टर और नागरिक कोलकाता में प्रोटेस्ट कर रहे थे, तो अपराधी दूसरी जगहों पर शिकार खोज रहे थे। विक्टिम में किंडरगार्टन की बच्चियां तक शामिल थी। कोई भी सभ्य समाज अपनी बेटियों बहनों पर इस तरह के अत्याचारों की इजाजत नहीं दे सकता। देश के लोगों का गुस्सा जायज है, मैं भी गुस्से में हूं।’’

राष्ट्रपति शासन अभी तक क्यों नहीं?

महिला आदिवासी राष्ट्रपति होने के कारण और महिला पर यौन अत्याचार होने के कारण उनके मन में चिंता के भाव, आना और ‘‘आहत’’ होना स्वाभाविक ही है। परंतु राष्ट्रपति के संवैधानिक पद पर रहते हुए सार्वजनिक रूप से उक्त प्रतिक्रिया व्यक्त करना, क्या इस बात का संकेत नहीं करता है कि राज्य में कानून, तंत्र की व्यवस्था ध्वस्त हो गई है? आखिर ‘‘राष्ट्रपति शासन’’ लगाने की परिस्थितियां क्यों व कब पैदा होती है? राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में राज्यपाल को गृह मंत्रालय के माध्यम से राष्ट्रपति को रिपोर्ट करना होता है। उनका भी मत ममता सरकार के प्रति कभी भी अच्छा या सकारात्मक नहीं रहा है। वे कह चुके है, बंगाल में लोकतंत्र नहीं है। राज्य सरकार हर मोर्चे पर असफल रही है और बंगाल पुलिस का अपराधीकरण हो गया है। बावजूद इसके न तो राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की और न ही केंद्र ने राज्यपाल से रिपोर्ट देने को कहा। वैसे भी राज्यपालों की स्थिति तो केंद्र के इशारों पर कार्य करने की ही रही है। इसलिए यह समझ से परे है कि इतनी खराब कानूनी स्थिति, जिस पर केन्द्र सरकार के मंत्री व पश्चिम बंगाल भाजपा के नेतागण ममता सरकार पर आरोपों की बौछार लगातार लगा रहे है, बावजूद इसके राष्ट्रपति शासन के कोई संकेत अभी तक नहीं मिले है? यदि यह स्थिति किसी अन्य राज्य की होती तो शायद अभी तक राष्ट्रपति शासन जरूर लग जाता। पूर्व में भी कानून व्यवस्था के नाम पर राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाए गए थे। याद कीजिए 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाई गई थी तो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में ‘‘कानून व्यवस्था’’ के नाम पर ही राष्ट्रपति शासन लगाया गया था।

संवेदनशीलता! बलात्कार के अन्य जघन्य अपराधों तक क्यों नहीं?

इससे बड़ा प्रश्न यह है कि राष्ट्रपति की संवेदना में सिर्फ कोलकाता की टेªनी डॉक्टर की घटना का ही उल्लेख किया गया! क्यों? इससे भी बुरा जघन्य अपराध महाराष्ट्र के ठाणे के बदलापुर में हुई दो नाबालिग (मात्र 3 साल की) बच्चियों के साथ घटित बलात्कार की घटना, उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में दो बच्चियों के लटकेे शव, बिहार के मुजफ्फरपुर में 14 साल की दलित लड़की का अपहरण कर हत्या कर दी गई, असम रेप कांड असम रेप कांड, उन्नाव, हाथरस, बिलकिस बानो के दोषी अपराधियों को छोड़ना, महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न, मनीपुर में 4 मई को भडके दंगे के बाद दो आदिवासी महिलाओं को नग्न कर बदन से खिलवाड़ करते हुए घुमाया व गैंगरेप हुआ जिनमें एक महिला तो सीमा पर खड़े सैनिक की धर्मपत्नि थी, तब महामहिम एक शब्द भी नहीं बोली। आज भी नहीं बोली। इसी समय देश के कई राज्यों में बलात्कार की कई घटनाएं हुई है। हमारे देश में औसतन 85 बलात्कार प्रतिदिन (हर 16 मिनट में एक) हो रहे हैं। राजस्थान इस मामले में सबसे अग्रणी राज्य है। परंतु राष्ट्रपति ने उन सब घटनाओं को एक साथ जोडकर अपना दुख व रोष व्यक्त नहीं किया! क्यों। या फिर पश्चिम बंगाल के कोलकाता का नाम न लेकर वह देश के विभिन्न भागों में हो रही बलात्कार की अनेक घटनाओं का उल्लेख कर चिंता व्यक्त कर सकती थी? एक तो हमारे देश में राष्ट्रपति वैसे ही बहुत कम अवसरों पर बोलते है और जब राष्ट्रपति बोली तब निश्चित रूप से वे बोल निष्पक्ष नहीं दिखें। शायद इसीलिए तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के बयान महामहिम के उपरोक्त कथन के संबंध में आने लगे। इसलिए महामहिम को इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि देश में हो रही यौन शोषण की घटनाओं की एक लाइन से भर्त्सना करे और समस्त राज्य सरकार को निर्देशित करें कि कानून व्यवस्था व तंत्र को सुधारा जाए, क्योंकि दुष्कर्म के मात्र 27 प्रतिशत मामलों में ही सजा हो पाती है। 

भूलवश शायद गलत तथ्य का उल्लेख?

महामहिम ने शायद भूलवश एक गलत तथ्य का उल्लेख अपने लेख में किया है ‘‘वह जब स्टूडेंट्स, डॉक्टर और नागरिक कोलकाता में प्रोटेस्ट कर रहे थे, तो अपराधी दूसरी जगहों पर शिकार खोज रहे थे।’’ मुख्य  अपराधी की गिरफ्तार 24 घंटे के भीतर हो जाने के बाद अभी तक यह बात सामने नहीं आयी है कि इस कांड में अन्य अपराधी भी शामिल हैं? यद्यपि कुछ क्षेत्रों में यह दावा जरूर किया गया है। परन्तु यह तो डीएनए की रिपोर्ट से ही सिद्ध हो पायेगा, जिस रिपोर्ट आने की कोई जानकारी नहीं है। वैसे बलात्कार के मामलों को महामहिम नारी अस्मिता से जोड़कर देखने की बजाए घृणित पुरूष की मानसिकता पर ज्यादा विचार करने की आवश्यकता है। क्योंकि यौन शोषण, उत्पीढ़न के मामलों में अपराधी सिर्फ पुरूष ही होता है, महिला नहीं। अतः यदि बलात्कार के मूल अर्थात घटना न होने की स्थिति पर पहंुचना है, तो हमें घृणित पुरूष मानसिकता को सुधारना होगा। सिर्फ यह कहकर कि कम-छोटे कपड़े पहनने से यौन उत्पीड़न को उकसाया जाता है, हम मामले की जड़ पर नहीं पहुंच पायेगें। संत कबीर का यह दोहा महत्वपूर्ण है ‘‘बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय’’।  

एक बात और नारी सम्मान को तार-तार होने पर यदि ‘‘महामहिम’’ का गुस्सा व्यक्त करना ही था, तो नवीनतम वीभत्स घटना का उल्लेख पहले किया जाना चाहिए था। तत्पश्चात ही दूसरी (कोलकाता) घटनाओं का उल्लेख किया जाना था। ‘‘बदलापुर’’ के बाद कोल्हापुर महाराष्ट्र में 10 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म कर हत्या कर दी गई थी जिसका उल्लेख पहले किया जाना चाहिए था। यह एक महत्वपूर्ण बात यह भी है  कि यह वही कोलकाता है जिसे राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने तीन साल लगातार (2021 से 2023) सबसे ‘‘सुरक्षित शहर’’ के अवार्ड से नवाजा है, जहां सबसे कम संज्ञेय अपराध दर्ज किये गये।

Comments