व्यक्ति को अपने मित्रों की पहचान हो या न हो शत्रुओं की पहचान, और उनसे बचने की समझ अवश्य होनी चाहिए। शत्रु वे ही हो सकते हैं जो निजी या सामूहिक जीवन, जीविका, सम्मान या काम में बाधक हों। यदि हम अपने नगर की चिंता नहीं करते, अपने घर की रक्षा नहीं करते, अपने अधिकार क्षेत्र का सम्मान नहीं करते तो हम स्वयं अपने सबसे बड़े शत्रु हैं। मेरी चिंता के केंद्र में मेरी जन्मभूमि मेरा नगर हैं जिनके विकास, समृद्धि व अस्तित्व के साथ दोहरी मानसिकता रखने वाले षड़यंत्र कारी तत्वों से मुझे परहेज है साथ ही साथ समाज को सही शिक्षा देने , सही दिशा दिखाने वालों के लिए आत्मीय समर्पण भी । सत्य से विचलित होकर अपनी प्रतिभा के बल पर झूठ का प्रचार करके आप अपना सब कुछ खो देंगे या खो रहे हैं। हमने पिछली दो पोस्टों में आईने सामने रख कर दिखाया कि आपने अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया धोखा देते रहे, झूठ बोलते रहे, और यह विश्वास पाले रहे कि हम अपनी प्रतिभा और वाक्पटुता से अपने श्रोताओं को मूर्ख बना और भेड़-बकरियों की तरह जिधर चाहें हाँक सकते हैं। कृतघ्नता का क्या इससे गर्हित रूप हो सकता है कि जिनसे आप मान-सम्मान और शक्ति पाते हैं उन्हें मूर्ख समझ कर श्रेष्ठतर मनुष्य की जगह भेड़-बकरी बनाना चाहते हैं। मजेदार बात यह कि आपके प्रयत्न के बाद भी लोग मनुष्य ही बने रहते हैं परंतु आप स्वयं भेड़ बकरियों की तरह आचरण करने लगे हैं जिसका भान भी आपको नही है ।जिसके पास इतनी सी समझ नहीं है कि वह कृपा भाव से आपके गुलाम बने रहेंगे अंत में उन्हें भी पुरस्कार के बदले समय की बरबादी ही हाथ लगेगा फिर भी उनको उनकी गुलामी मुबारक़ हो ।पंचतंत्र का बूढ़ा शेर सोना देने की लालच देकर ही शिकार करता था । आज कुछ लोग नगर को शिकार और स्वयं को शिकारी होने का भ्रम पाले बैठे हैं, अपने टूटते तिलिस्म से बौखला गए हैं । पैरलर व्यवस्था से चुनाव जीतने का दिवास्वप्न देखने लगे हैं । आप बढ़िया वक्ता हो लेकिन उस ज्ञान को भूल गए हैं, कि “सत्य झूठ से अधिक शक्तिशाली होता है। जो अपना होता है उसे अधोगति से बाहर निकालना नैतिक दायित्व है ऐसा मेरा मानना है इसलिए अक्षरशः सत्य लिखा । जनमानस में सच्चाई को परखने की असाधारण शक्ति होती है जो इस शक्ति से अनभिज्ञ होते हैं स्वयं अपने दुश्मन हैं। जिन्हे गोलमोल बातें करने की आदत हैं करें हम तो सीधी बात कहने के आदी हैं ।
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