शेष नारायण राठौर:-
अपार जनसमूह के मध्य जयघोष के नारों के साथ नगर के हर गली चौराहों में आरती, फूल मालाओं से हो रहे आत्मीय स्वागत सम्मान से मै अभिभूत था । नगर के प्रथम नागरिक का ऐसा स्वागत!मै अब उस संस्था का प्रमुख बन गया जिसमें कभी दैनिक वेतन भोगी रहा। बीतते काल खण्ड के साथ मेरे प्रति जनमानस का उत्साह व विश्वास फीका पड़ने लगा, कारण केवल इतना था कि जिनके आक्रांत से त्रस्त जनता ने अपना आत्मीय समर्पण, समर्थन दिया उन्ही लोगों को अपना सिपहसलाहकार बना लिया। अजातशत्रु बनने के फ़िराक़ में मै अपने ही लोगों का विश्वास खोता चला गया परिणामतः मुझे अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से पदच्यूत होना पड़ा । किन्तु इस राजनीतिक यात्रा में समर्पित लोगों का एक समूह मेरे साथ ही रहा यही कारण था एक बार मै पुनः स्थानीय निकाय का प्रमुख बन गया और एक बार तो बिहार की तर्ज पर मेरी राबड़ी भी सत्तासीन हुई, मै जेल तो नही गया किन्तु वित्तीय अनियमितता सिद्ध होने पर मुझे चुनाव न लड़ने का प्रतिबन्ध अवश्य लगा दिया गया । इस राजनीतिक उतार -चढ़ाव के सफऱ में मुझे बेहतरीन लोगों का समर्थन व समर्पण दोनों ही अनायास मिलता रहा लेकिन मै सदैव भयभीत रहता था कि कही मेरा कोई सहचर मेरा विकल्प न बन जाएँ इसलिए मेरे लिए यह आवश्यक था कि मै अपने उन लोगों को अपने छल प्रपंच की भूलभुलैया में उलझाकर उनके बढ़ते क़द को रोक लूँ । इस कार्य में मै सफल भी रहा । मेरी राजनीतिक यात्रा को सुगम बनाने वाले मेरे साथी मेरे छल कपट को समझ तो रहे थे किन्तु विकल्प विहीनता के कारण मेरा प्रतिकार न कर सके ।बिना किसी प्रतिसाद के मुझसे जुड़े लोगों को अब नगर का हित ज्यादा रुचिकर लगने लगा है ।इसलिए बदलते परिदृश्य में आजकल मेरी गति युद्ध के अंतिम पड़ाव में असहाय पड़े दुर्योधन की तरह हो चली है,बेहतर बनने के चक्कर में बेहतरीन लोगों को खो चुका हूँ ।विश्वास भले ही खो दिया हो लेकिन हार नही मानूंगा,मेरा अधिकतर समय अब यह विश्वास दिलाने में बीतता है कि मै एक बेहतर उम्मीदवार हूँ। मै अपने मन की मृगमरिचिका का कुशल अभिनयकर्ता हूँ, भावनात्मक शस्त्र का प्रपंची प्रयोग करना मुझे आता है , मातृ संस्था को धता बताते हुए बेमेल गठजोड़ भी करना पड़ जाय तो मुझे कोई संकोच नही होगा ।अपनी तृष्णा को नए कलेवर के साथ जनता की डिमांड बताकर नगर में परोसना भी मुझे आता है ।मै हूँ नगर की आवश्यकता और नगरीय निकाय का एक मात्र हक़दार..फिर भी यदि कुछ ऊंच नीच हुआ तो फिर..... न जीतब न जीतय देब ।
(इस लेख का किसी व्यक्ति व स्थान से कोई सम्बन्ध नही है )