‘‘न्यूटन‘‘ क्या भारतीय राजनीति को ‘‘न्यूट्रल‘‘ कर देगें?
राजीव खण्डेलवाल:-
मैं विज्ञान का छात्र रहा हूं। बचपन में मैंने पढ़ा है कि ‘‘न्यूटन के गति‘‘ के तीसरे नियम के अनुसार ‘‘हर क्रिया के बराबर (समान) और विपरीत प्रतिक्रिया होती है‘‘। प्रसिध्द वैज्ञानिक ‘‘न्यूटन‘‘ ने अपनी पुस्तक ‘‘प्रिंसीपिया मैथमैटिका‘‘ (वर्ष 1687) के पृष्ठ 20 पर उक्त नियम लिखा है। यह नियम दो वस्तुओं पर बल के पारस्परिक प्रभाव के बीच के बंधन का वर्णन करता है। इसके कई उदाहरण हैं! जैसे बन्दूक चलाना, नाव चलाना, मनुष्य का तैरते हुए आगे बढ़ना, रॉकेट लॉन्चिंग आदि आदि। इस सिद्धांत को अभी तक कोई चुनौती अधिकाधिक रूप से कहीं से भी नहीं मिली है और आज भी यह नियम सर्वमान्य है। यद्यपि न्यूटन के उक्त नियम में वस्तु का आकार पूरी तरह महत्वहीन है, लेकिन कुछ चल रहे नये शोधों के अनुसार प्रतिक्रिया वस्तु के आकार पर निर्भर करती हैं। अर्थात प्रतिक्रिया क्रिया के ‘‘बराबर, कम या ज्यादा‘‘ भी हो सकती हैं। परंतु राजनीति में अथवा अपराधिक क्षेत्र में या ज्यादा सही यह कहना होगा कि राजनीति के अपराधीकृत होते जा रहे हैं क्षेत्र में भी यह सिद्धांत लागू होता है या किया जा रहा है, जो अभी ज्ञात हुआ है। किसी ‘‘आपराधिक कृत्य‘‘ को इस नियम का तर्क देकर उसका औचित्य सिद्ध करने का दुस्साहस निश्चित रूप से आज की गिरती हुई राजनीति में बिल्कुल उसी तरह संभव है जैसे हथेली पर सरसों उगाना। यह आश्चर्य का तो नहीं, लेकिन बेहद दुखद अवश्य है।
बात उत्तर प्रदेश की है, जहां बलिया जिले के दुर्जनपुर गांव (यथा नाम तथा गांव) में हुई गोली कांड में एक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है। ‘‘बलिया‘‘ उत्तर प्रदेश का सबसे पुराना हिस्सा और बिहार सीमा से लगा हुआ वह जिला है, जहां से कभी ‘‘युवातुर्क‘‘ चंद्रशेखर सांसद हुआ करते थे, जो बाद में देश के प्रधानमंत्री बने। उत्तर प्रदेश को ‘‘उत्तम प्रदेश‘‘ बनाने की घोषणा वाले लोकप्रिय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रदेश में उनके बैरिया विधानसभा क्षेत्र के विधायक सुरेंद्र सिंग उक्त घटना के ‘‘कारण‘‘ में न्यूटन के विश्व प्रसिद्ध उपरोक्त सिद्धांत का हवाला बहुत ही बेशर्मी से दे रहे हैं, और लगातार दे रहे हैं। यद्यपि विधायक का यह कथन तो कुछ सीमा तक सही है कि, इस मामले में मीडिया सिर्फ एक पक्ष को ही उद्धृत कर रहा है। दूसरे पक्ष के भी कई लोग घायल होकर अस्पताल में भर्ती है। उनको चोट कैसे आई और इसके लिए कौन कौन जिम्मेदार हैं, इस बाबत मीडिया बिल्कुल भी ‘‘हाईलाइट‘‘ नहीं कर रहा है। न ही विधायक की मांग के बावजूद दूसरे पक्ष के विरुद्ध प्रशासन द्वारा कोई ‘‘प्राथमिकी‘‘ दर्ज की गई है। परंतु वही विधायक उसी सांस मैं हत्या के आरोपी की भर्त्सना व आलोचना करना तो दूर, बल्कि उसके द्वारा गोली चलाया जाना आत्मा रक्षा में उठाया गया कदम कहकर, आरोपी हत्यारे धीरेन्द्र प्रताप सिंह की रक्षा करने का प्रयास कर रहे हैं, जो भाजपा का कार्यकर्ता, होकर भाजपा के सैनिक प्रकोष्ट का अध्यक्ष व उनका सहयोगी हैं। अन्यथा विधायक के कथनानुसार तो आरोपी द्वारा गोली चालन न करने पर उसके ही परिवार के दस बारह लोगों की हत्या हो जाती। यद्यपि अब स्वयं आरोपी का यह कथन वायरल हो गया है कि, उसने गोली ही नहीं चलाई। वैसे भी आत्मरक्षा में गोली चलाने से सामने वाले व्यक्तियों की मृत्यु हो जाने पर मुकदमा तो धारा 302 का ही दर्ज होगा। अभियुक्त के प्रति सुरक्षा का अधिकार को तो न्यायालय ही तय करेगीं, पुलिस नहीं। यह भी कानून में एक कमी है, जिसकी फिर कभी चर्चा करेंगे। हद तो तब हो गई जब विधायक ने आरोपी हत्यारे के आत्मसम्मान की रक्षा से जाति के आत्मसम्मान तथा स्वयं के कर्तव्य को जोड़ दिया। विधायक सुरेंद्र सिंग आरोपी द्वारा की गई गोली चालन को ‘‘क्रिया की प्रतिक्रिया‘‘ बतलाते हुए घूम रहे हैं। यह सार्वजनिक जीवन जीने वाले चुने हुए जनप्रतिनिधि के लिए शर्मसार करने वाली बात है।
ये वही विधायक सुरेंद्र सिंह है, जो हमेशा अपने ‘‘अटपटे, उलूल, जुलुल व विवादित‘‘ बयानों के कारण मीडिया में चर्चाओं में रहते हैं। आपको याद होगाय हाथरस बलात्कार कांड पर, पहले उनका यह बयान आया था कि ‘‘फर्जी महिला के दलित उत्पीड़न के नाम पर किसी का भी जीवन संकट में पड़ सकता है‘‘। फिर बाद में इसी घटना पर यह भी कहा कि ‘‘संस्कार‘‘ से ही ‘‘बलात्कार की घटनाएं रुकेगी‘‘। यहां तक तो फिर भी गनीमत थी। लेकिन आगे वे यह कह गए कि ‘‘माता-पिता अपनी जवान बेटी को सांशारिक वातावरण में रहने का तरीका सिखाएं‘‘। लेकिन लड़कियों के साथ लड़कों को भी संस्कार देने का बात वे भूल गए। ‘‘मुसलमान कई बीवियां रखते हैं और उनकी औलादे जानवर प्रवृत्ति की होती है।’’ वे मीडिया को ‘‘दलाल‘‘ तथा डॉक्टरों को ‘‘राक्षस‘‘ तक भी कह चुके हैं। इस तरह से वह हमेशा ही विवादित बयानों से मीडिया की सुखीयों में बने रहते हैं। तथापि विधायक के इस (दुः) साहस की प्रशंसा इसलिए जरूर की जानी चाहिए कि, वे पीडि़त परिवार के लिए उपजी सहानुभूति की धारा व भीड़तंत्र के विरूद्ध भी अपने सहयोगी कार्यकर्ता आरोपी को बचाने के लिये न केवल अपने स्टैंण्ड पर अड़े हुये है, बल्कि इसके लिए उन्होने एक हफ्तेे बाद थाना पर हजारों साथियों के साथ धरना देने की चेतावनी भी दी हैं। अन्यथा ऐसी स्थिति में तो नेता ‘‘भाग‘‘ खड़े होते हैं। और एक सर्वकालिक तकिया कलाम कह देते कि ‘‘कानून अपना काम करेगा‘‘, और स्वयं को अपनी जिम्मेदारी से मुक्त मान लेते हैं।
शायद विधायक को न्यूटन का क्रिया प्रतिक्रिया का नियम का वास्तविक अर्थ मालूम नहीं है। क्योंकि न्यूटन ने जो नियम बतलाया था, उसमें क्रिया की प्रतिक्रिया बराबर की लेकिन ‘‘विपरीत दिशा‘‘ में होने की बात कही थी। यहां पर विधायक के अनुसार न्यूटन की क्रिया प्रतिक्रिया के उक्त नियम को यदि लागू कर दिया जाए तो जिस व्यक्ति ने हत्या (क्रिया) की है, उसकी प्रतिक्रिया में इस कृत्य के विपरीत उसे कार्य करना होगा। अर्थात मृतक पीडि़त व्यक्ति के घर जाकर परिवार के सदस्यों के बीच रहकर इस तरह से प्रायश्चित करना होगा, ताकि परिवार के लोग उस व्यक्ति की कमी व दुख को भूल जाए । अर्थात हत्या का आरोपी प्रायश्चित करते करते उस दुखित, पीडि़त परिवार में स्वयं को ...हुई जगह में लगभग ‘स्थापित‘ कर ले। वास्तव में न्यूटन की यही क्रिया की प्रतिक्रिया होगी। इस संबंध में आपको प्रसिद्ध फिल्मी कलाकार राजेश खन्ना ‘‘काका‘‘ की एक फिल्म शायद उसका नाम ‘‘दुश्मन‘‘/‘‘रोटी‘‘ है, की याद दिलाना चाहता हूं, जिसमें राजेश खन्ना इसी तरह का प्रायश्चित करते हैं।
न्यूटन का यह नियम राजनीति में या सार्वजनिक जीवन में अच्छे कार्यों पर क्यों नहीं लागू होता है, यह एक शोध का विषय होना चाहिए। मतलब यदि एक पार्टी राजनीति में कोई अच्छा कार्य करती है तो, प्रतिक्रिया में उसकी एकदम विपरीत विरोधी दूसरी पार्टी उतना ही अच्छा काम क्यों नहीं कर पाती है? प्रश्न यह है। अर्थात भाजपा और कांग्रेस परस्पर एक-दूसरे के अच्छे कार्यों से प्रेरणा लेकर और बेहतर कार्य क्यों नहीं कर पाते हैं, कर सकते हैं? ‘‘रामराज्य‘‘ लाने के लिए यह स्थिति बनानी ही होगी। ‘‘न्यूटन‘‘ को शायद यह पता नहीं था कि भविष्य में, 21वीं सदी में, राजनीतिक अपराधीकरण के क्षेत्र में भी राज नेता अपने अपराधी साथियों की चमड़ी बचाने के चक्कर में उनके नियम को अपने तरीके से लागू करेंगे? अन्यथा वह अपने गति के तीसरे नियम के साथ और एक स्पष्टीकरण इस सिद्धांत को स्पष्ट करने के लिए अवश्य जोड़ देते। ताकि राजनेताओं को यह सिद्धांत का उपयोग करने में ‘‘असहजता‘‘ नहीं होती। वैसे न्यूटन की ‘‘आत्मा‘‘ ‘‘आकाश‘‘ से अवश्य देख रही होगी और अपना सिर फोड़ रही होगी ,यदि उसके सिद्धांत की ऐसी फजीहत होनी थी, तो शायद वे यह नियम निर्मित ही नही करते?