प्रधानमंत्री के आह्वान का दैवीय महत्त्व है जो नई ताकत, नई उम्मीद, नया मनोबल प्रदान करने वाला है

पं अविरल गौतम  :-


देश के साथ साथ प्रदेश में कोरोनावायरस की वजह से मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। शनिवार को छह लोगों की मौत हुई। इनमें तीन सिर्फ मध्यप्रदेश से हैं।यह सच है कि आज कोविड-19 ने जिस तरह दुनिया में दहशत मचाई हुई है और बहुत से लोगों की जान का दुश्मन भी बन चुका है, उसके लिए दुनिया के हर देश को कोरोना को हराने के लिए हर संभव उपाय करने चाहिए। कोरोना वायरस प्रकृति का प्रकोप भी है। अब दुनिया में प्रकृति को  सम्हालने  की चिंता भी होने लगी है। हमारे देश में भी कोरोना को हराने के लिए बहुत से उपाय किए जा रहे हैं।इस बीच हमारे  प्रधानमंत्री मोदी का तीसरा राष्ट्रीय संबोधन  बेशक ही संकटकालके समय नई ऊर्जा देने वाला  है प्रधानमंत्री ने आह्वान किया है कि कोरोना से उपजे अंधकार को दूर करने के मद्देनजर कल रविवार 5 अप्रैल, रात्रि 9 बजे, 9 मिनट तक अपने-अपने घरों की लाइटें बंद करें और दहलीज या बॉलकनी में आकर मोमबत्ती, दीया, टॉर्च या मोबाइल की लाइट जलाएं। बेशक हमारी संस्कृति में प्रकाश का दैवीय महत्त्व है और प्रकाश-पुंज नई ताकत, नई उम्मीद, नया मनोबल प्रदान करता है। इस घोषित बे-मौसमी दीवाली से प्रधानमंत्री का मकसद हो सकता है कि कोई भी देशवासी अकेला महसूस न करे प्रकाश के उन पलों से भारत की दिव्य, भव्य सामूहिकता भी उजागर हो सकती है।यह संदेश शायद यह भी दर्शाता है कि प्रकृति की रक्षा के लिए घर की लाइटों का उचित प्रयोग भी जरूरी है, कई चिकित्सकों ने प्रधानमंत्री के इस संबोधन का आकलन मनोविज्ञान, खासकर कोरोना पीड़ितों की मनोस्थिति के आधार पर भी किया है। संबोधन में आध्यात्मिकता का भाव भी है और उस संदर्भ में प्रधानमंत्री एक धर्मगुरु प्रतीत हुए। प्रधानमंत्री पहले भी ऐसी अपील कर चुके हैं कि धर्मगुरु अपनी विचारधारा वालों को अपने समर्थकों को समझाएं, ताकि वे मौजूदा लड़ाई में भागीदारी कर सकें। बेशक निराशा, अनिश्चितता और अंधकार के इस दौर में प्रधानमंत्री देश के 130  करोड़ नागरिकों को एकजुट रखना चाहते हैं और कोरोना के खिलाफ उनकी लड़ाई को जारी रखते हुए अंतिम जीत के लक्ष्य को जिंदा रखना चाहते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हमारे लॉकडाउन के प्रयास को सराहा है और उसे विकासशील देशों के लिए एक उदाहरण भी माना है। संगठन ने हमारी सरकारों के आर्थिक, भोजन और इलाज संबंधी प्रयासों की भी सराहना की है। विश्व के भारत मूल के कई चिकित्सा विशेषज्ञ भी लॉकडाउन को यथासमय उठाया गया कदम मानते हैं,प्रधानमंत्री ने तीसरे संबोधन में भी सामाजिक दूरी और अपने घर तक सिमटे रहने का आह्वान किया है। सवाल है कि या तो भारतीय जनता प्रधानमंत्री की अपीलों को सुनती-समझती नहीं है अथवा कोरोना के जानलेवा प्रभावों के प्रति वह अब भी जागरूक या चिंतित नहीं है? ये सवाल इसलिए भी हैं, क्योंकि भारत के शहरों, कस्बों, बाजारों में राशन या किसी अन्य सेवा को प्राप्त करने के लिए जो लंबी-लंबी लाइनें लगी हैं, उनमें एक व्यक्ति दूसरे से लगभग सटा हुआ मौजूद है। सामाजिक दूरी रखने के अभियानों का क्या होगा? और इस चरण में भी हम नहीं चेतते हैं, तो दुनिया के बड़े डाक्टर क्या कर सकते हैं ।


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